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  1   ( हिन्दी कविता)      मेरा पगार कहाँ है साई ?   ( 1 मई मजदूर दिवस पर विशेषरूप से घरेलू महिलाओं के लिए   ) डा ० कामिनी   कामायनी ।    खुली बहस की   बिगुल बजाकर   शहर गाँव बस्ती नगरी सब     पर्दे    छोड़ सड़कों तक   आई      सहने में अब कौन भलाई   ।    प्रेम पिपासी   जलकुंभी सी   अपनी जड़ें कभी जमा न पाई बदले पर्यावरण   की पीड़ा सी दबी लहर अब बाहर आई ।                       अलंकार उपमान    व्यर्थ के                           होते रहे कारण अनर्थ के                      बात बात पर तंज़ ही खाई    ...

मंसूर के पीले फूल और अभिशप्त यक्षिणी

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यूं ही   व्यतीत हुए कितने दिनों , महीनों , सालों , बल्कि दशकों , बाद भी ऊंचे ऊंचे पहा ड़ियों और शान से सिर उठाए , प्रहरी से खड़े पेड़ों से घिरे , कैमल बैक हिल्स पर उस नवविवाहित युगल को देख कर एक क्षण के लिए उसका यूं सिहर   जाना स्वाभाविक ही रहा होगा     ।मस्तिष्क के किसी कंदरे में कराहता कोई टीस यादों और हक़ीक़त के मजबूत क़िले की दीवार फांद   कर दिखा   गया था भुवन को , भुवन को नहीं , बल्कि उसकी झलक को   !अरे   नहीं , नहीं भुवन कहाँ !   वह   अब तक वैसा ही स्लिम ट्रिम किशोर रहा   होगा क्या ? मगर हमशक्ल ! शायद हाँ ।          इस करोड़ों अरबों की भीड़ वाली दुनिया में कभी किसी की हंसी , किसी की आँखें , चाल चलन , हाव भाव , क्या शक्ल तक इतना मिलता जुलता है कि मनुष्य का दिग्भ्रमित हो जाना   स्वाभाविक ही है । मगर उसकी झलक उसे दिल द हला देने वाली व्यतीत की झलक तो दिखला ही गई थी । सच तो य ह   है कि वह दिल में बसी उस खंडित इमारत की आभासी   झलक देखने की असीम तमन्ना लिए ही तो हजारों मील दूर से मा...

चिर प्रतीक्षित | ( हिन्दी कहानी )

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चारों ओर प्रकृति ने हरा दुपट्टा लहरा दिया. . .मामूली हरा नहीं . . एक रहस्यमयी . .रूहानी प्रेम का प्रतीक़   .शाश्वत हरा .. .लो सावन आ गया . ..।देख लो. . उमडते घुमडते बादलों ने .तुम्हारी ऑखों का काजल सोख कर अपने में समेट लिया है. . .।मुस्कुराओ तो कलि खिलेगी न. . .।डालो पेडों पर झूले. .    झूलें . .. ऊॅची ऊॅची .. .पेंगे मारते. . . ।ख्वाब ने उसके कर्ण कुटीर के एकदम पास आकर फुसफुसाया . .तो अधखुली निगाहों से उसने हवा . .पानी. . पेडों .. क्षितिज को निहारा था. . .उड रहे थे वहॉ . . उसके . . रंग बिरंगे लाल पीले   सुरमई सुनहरे   . ..सतरंगी सपने. . .।उसने जल्दी से ऑखें मींच ली. .   . ..झूलाओ झूला ।तेज तेज हवाए.   .मलय पर्वत से दौडती हुई आईं .थी. . आओ हम तुम्हारे हिंडोले को आसमान तक ले जायेंगे. . .चॉद पर. . देखो. . वो राजकुमार    .. अपनी बाहें फैलाए .. . शबनमीं .. तबस्सुम लिए तुम्हारा ही इंतजार सदिओं से कर रहा है   .. . ।उसने चौंक कर ऑखें खोली. . “मलय सच कह रही है क्या. . ।’क्या सही में कोई अधीर प्रेमी .. .सदियों से हमारा इंतजार कर रहा है   .. ...

कतरा -कतरा सुख ।( हिन्दी कहानी )

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               ॥   कतरा -कतरा सुख ।( हिन्दी कहानी )     कामिनी कामायनी    मात्र तीन महीने में कोई यूं बदल भी जाए यह मुमकिन   हो सकता है , मगर सविता   बदल जाएगी , ऐसा तो उसने स्वप्न में भी   सोचा   नहीं   था । ऐसा   हो कैसे सकता है , उसकी तो उम्र अभी और भी विकसित , पुष्पित और पल्लवित होने की थी , उस पर वसंत की बौछारें अभी और भी आने वाली थी   । मेरा   स्तब्ध होना स्वाभाविक ही था   ।   इस खौफ़नाक विचार को अपने दृश्य पटल से जब रद स्ती हटाने के ख्याल से , एक विचार आया था , दृष्टि भ्रम हो   शायद , हो सकता है वह कोई और हो , मगर नहीं वह सविता   ही थी।   पीछे से ही   पहचान में आ गई थी   ।