चिर प्रतीक्षित | ( हिन्दी कहानी )


चारों ओर प्रकृति ने हरा दुपट्टा लहरा दिया. . .मामूली हरा नहीं . . एक रहस्यमयी . .रूहानी प्रेम का प्रतीक़  .शाश्वत हरा .. .लो सावन आ गया . ..।देख लो. . उमडते घुमडते बादलों ने .तुम्हारी ऑखों का काजल सोख कर अपने में समेट लिया है. . .।मुस्कुराओ तो कलि खिलेगी न. . .।डालो पेडों पर झूले. .   झूलें . .. ऊॅची ऊॅची .. .पेंगे मारते. . . ।ख्वाब ने उसके कर्ण कुटीर के एकदम पास आकर फुसफुसाया . .तो अधखुली निगाहों से उसने हवा . .पानी. . पेडों .. क्षितिज को निहारा था. . .उड रहे थे वहॉ . . उसके . . रंग बिरंगे लाल पीले  सुरमई सुनहरे  . ..सतरंगी सपने. . .।उसने जल्दी से ऑखें मींच ली. .  . ..झूलाओ झूला ।तेज तेज हवाए.  .मलय पर्वत से दौडती हुई आईं .थी. . आओ हम तुम्हारे हिंडोले को आसमान तक ले जायेंगे. . .चॉद पर. . देखो. . वो राजकुमार   .. अपनी बाहें फैलाए .. . शबनमीं .. तबस्सुम लिए तुम्हारा ही इंतजार सदिओं से कर रहा है  .. . ।उसने चौंक कर ऑखें खोली. . “मलय सच कह रही है क्या. . ।’क्या सही में कोई अधीर प्रेमी .. .सदियों से हमारा इंतजार कर रहा है  .. . . .।रोम रोम वाद्य यंत्र . .. की तरह झंकृत हो उठे. . .ह्दय वीणा सप्तम स्वर में मुखरित को उठी. . . ‘चलो .. फिर देर किस बात की .. ।


    ढोल .. मंजीरे. . शहनाई .. के साथ. . उसने एक नए घर में कदम रखा था .. .बडा नामी गिरामी परिवार. . .आधुनिक .. .पढा लिखा. . . सास भी कालेज की प्रिसिपल. .  ‘और क्या चाहिए तुम्हें इतना अच्छा घर. . .और वर .. क्लास वन ऑफिसर. . .भारत सरकार .. . अशोक स्तंभ. . . पिछले जन्म  हाथी पर चढ कर गौरी पूजा था. . तुमने . .या हीरे मोतियों का दान किया था .. .।’ सहेलियो ने  ईष्याभरी ऑखों से कहा तो उसे लगा शायद सही ही कह रही होगी . ... . .सुनहरे .. गोटों वाली सिल्क के लहंगे. . को संभालती. . वह ऑखें फाड फाड .. कर. . नए घर का कोना कोना देखने लगी  . .. ‘कहॉ है .. सदियों का चिर प्रतीक्षित राजकुमार उसका. . . ।’

   पर. ये कौन  राजकुमार आया था . .पहले दिन ही उसे उसकी चाल में विचित्र सी अकडन लगी . . .हॅसी से शायद एलर्जी था. . या डक्टर ने मना किया होगा . .।चेहरे पर खौफ तैर रहा था. . एकदम .. सेना के वरिष्ठतम अधिकारियों जैसा .. .. जो शायद. .सदियों पहले हॅसे होंगे ।

      घर तो बडा होना ही था. . बडे लोगों का जो था .. . एक बार एहसास भी दिला दिया गया कि वैसे तो एक से एक रिश्ते थे. .मगर. . वगैरह वगैरह. . . .।राजकुमार ने उसे ही क्यों पसंद किया .. ।उसने प्रथम बार संपूर्ण निगाहों से राजकुमार को देखा. . मोटा .. काला .गंजा . राजकुमार कलाई में बंधी अपनी घडी देख रहा था .. ।शादी में समय ज्यादा खराब हो गया था .भरपाई करनी थी उन बहुमूल्य समय का .. .।

    घर एकदम मिलिट्री एकेडमी. . .सास तो सदा से प्रिन्सिपल होती आई हैं यहॉ तो बकायदा मुहर लगा हुआ ।एकदम सख्त. . .अब ज्यादा क्या बोलना .. घर में. . गॅवार तो नहीं हैं न. . . शब्दों की जरूरत क्या .. जब बिना बोले काम चल सकता है।समय तो अद्यतन ज्ञात किसी भी तेज से तेज चलने वाली वस्तु से भी तेज है.. . ।पल पल व्यतीत होने वाले इस समय का सदुपयोग करो . . कितने दिन माया में रमे रहोगे. . . जाओ नौकरी ज्वाइन करो .. .।और राजकुमार को जाना था .. चला गया . .अभी तो ट्रेनिंग ही है. . माता पिता के इशारे पर चलने वाला कठपुतली. . . ।

    रात रूक रूक कर उसके पास आती. . तुम गजल क्यों नहीं गा रही हो . .मैं तुम्हारे पीछे. . पीछे यहॉ तक इसीलिए तो आई हूँ . . . ।उसने रात को हौले से छुआ .था ‘गजल सूख गई है रजनी. . .. . जब बारीश होगी . . फिर   भरे भरे तालाब में गजल के फूल खिलेंगे. . तब तुम आना ।पेड पौधे झाडियों से ऊपर उठती हुई रात आकाश में जाकर विलिन हो गई थी ।

   पपीहे ने फिर कहीं आवाज उठाई थी . . . राजकुमार आया था. . मगर घोडे वाला नहीं. . .उसे लगा होगा. . अब शीताल को उसकी विशाल सरकारी कोठी में होना चाहिए. . ।जब कोठी को एतराज नहीं था तो प्रिसिंपल साहिबा को भी नहीं हुआ । उनके चेहरे पर कोई भाव आया ही नहीं अच्छा

या . .बुरा. . .।अब चेहरा क्या पढना. . उसे कौन सा मन करता है. .निर्जीव किताबों में गोता लगाने का ।वह तो पढना चाहती है . . पन्ना पन्ना .. प्रकृति का. . आखर आखर प्यार का . .।मगर प्रेम है ही कहॉ उसकी जिन्दगी में .. .अभी तक तो  किसी भी रास्ते आया नहीं लगा. .. आयेगा .क्या कभी किसी छिद्र से . .. ।

   प्रेम  ..  उसका ह्दय जोर से धडका उठा . ..तो कोई है. . चॉद के देश में  .. . . मैं तो कैद में उलटी लटकी हुईराजकुमारी. . . काल कोठरी में बंद. . .अनंत यातना सह रही . . मेरी ऑखों से झर झर झरते लाल लाल मोती . .तुम्हें आकाश गंगा में बहते मिलेंगे. . वे तुन्हें हमारी कहानी कहेंगे. . उन्हीं का अनुशरण करते हुए मेरे पास चले आओ. . मुझे मुक्त करो इस कैद से. .कई जनमों से मैने रोशनी का एक टुकडा भी नहीं देखा   . .. आओ. . . उसकी ऑखें बंद बंद हो गई .. .धडकने बेइंतहॉ बढ गई .. .सॉसें रूकने लगीं .. . .. मदहोश सी वह लडखडा उठी. . . .. यह कैसी खुशबू है. . .ओह . . चॉद के देश वाले .. 

     “ये एक बडे ही प्रसिद्व कवि हैं .. शेर . . गजल वजल के दीवाने .. .तुम्हें इन से बातें कर के अच्छा लगेगा ।’ राजकुमार तो आपको पता है. . मैं भावुक़ . कथाओं  ..ख्वाबों की दुनिया में . .भटकने वाली.  .।

 ‘हूँ’ हॉ .. कुछ भी तो नहीं निकला था .. उस वक्त कंठ से  .. कई घंटों के बाद जब सभी घरों की बत्तियॉ बुझ चुकी थी बेडरूम में खिडकी से निहारते हुए हौले से उसने. .चॉद से कहा था ‘कविताओं का शौक नहीं है मुझको. . ।’  पता नहीं राजकुमार ने क्यों सुन लिया .. हालाकि वह उस वक्त अपनी ही तरह मोटी सी एक किताब में डूबकी लगाए हुए था ।  ‘लेकिन तुम्हारे पापा ने तो कहा था कि .. ।’   ‘वो तब की बात थी. . पापा ने  सच ही कहा था .. अब की नहीं. .. ।’  राजकुमार ने फिर कुछ नहीं पूछा .. क्यों .. क्या बात हो गई. . वर्षो पुराना शौक कैसे ध्वस्त हो गया . .उसे ज्यादा बोलने की आदत जो नहीं थी .।कुछ देर बाद लाइट बन्द करके सो गया । शीतल .वहॉ से उठकर बरामदे में राकिंग चेयर पर आकर बैठ गई .. .कुछ देर झूलने के बाद .. नींद ने उसे भी निमंत्रण दिया. . था ।राजकुमार सुगबुगाया . .फडफडाया  .. फिर सो गया ।

    नाश्ता खाना. . .रॉलिंग चेयर पर झूलते बैठना . . और काम ही क्या था. . .।मन को भविष्य से वर्तमान पर लाने के लिए .. .माली के साथ. .मन पसंद पौधे लाने नर्सरी चली जाती ।  कोठी के कंपाउंड को लाल पीले नीले सफेद. . गुलाबी बैंगनी न जाने कितने रंगों के फूलों से भर दिया .. आने जाने वाले चकित रह जाते फूलों की छटा देखकर. . वाह. . वाकई जन्नत है .. . ।’अनायास उनके मुंह से निकल जाता। ‘खुद पूरे दिन इसी में लगी रहती है।’ राजकुमार गैोरवान्वित   होकर कहता   .या कहने के लिए कह जाता क्या पता. .।उसके स्वर में भी कोई भाव नहीं होते ..  इसलिए वह समझ नहीं पाती ।

  “ये डायरी तुम्हारी है. . शीतल ..” ।ऑखें उठी थीं .. लिखावटें तो मेरी ही है. . . . कहना चाह रही थी कुछ व्यंग से ..कुछ हास्य से. . मगर स्वर दगा देकर रूदन में न बदल जाए. . इस भय से सतर्क को गई । राज कुमार ने भी बात की खाल नहीं निकाली .. थी ।

    अकेले में तर्को ने अपने ढेर सारे तीर उसके दिमाग में उथल पुथल मचाने के लिए रख छोडे. . ।वह सोचने लगी. . डायरी से क्या मतलब था . . .उसने शायद पढी होंगी .. सोचा होगा. . जब कविताए आज भी जिन्दा है. . तो कवियो से इतनी बेरूखी क्यों. .  या फिर . . उस दिन झूठ क्यों बोली. ।नहीं नहीं बोली थी तो वह चॉद से स्ी थी . . और चॉद को सब पता है. कि उसे झूठ से कितनी नफरत है..  . .कविता तो वह अपने चिर प्रतीक्षित के लिए लिखा करती जो सदियों से बॉहें फैलाए .. चॉद के देश में  .. . .. . . . . .. . ।

 बाहर खुले . .नीले आकाश के नीचे .. .ईंट की दीवारों से घिरे कंपााउंड में   प्रमुदित  प्रफ्फुल्लित खिले प्रसून .. मचल मचल कर उसे पुकार रहे थे न जाने कब से. . ।अब जाकर उसके कानो में आवाज आई. . चाय का प्याला टेबल पर बिलखता रह गया वह दौड पडी थी दरवाजे की ओर. . ।खिले पुष्प और भी खिल उठे उसे देखकर जैसे  . .. कलियॉ इठलाने लगी  . ..पत्ते गुनगुनाने लगे. . ।बलैया ली सब ने उसकी  पूछा फिर इशारों इशारों में. . ‘आओ याद करो .पहले कौन सी कली खिली थी. . .’ वशीकरण मंत्र में बॅधी. . उसने भी क्रम से उन उन पर हाथ रखा था. . .. फूल शरमा गए थे क्या याददाश्त है तुम्हारी भी ओ मेरी हसीन मलिका. . .।पहाडों के ऊपर वर्फ में जो फूल खिलते  है, और वहीं झर के फिर से खिलने के लिए जो विलिन हो जाते हैं. . उन कुसुमों ने भी तुम्हें पुकारा है. ।शीतल हैरान थी. .  ..जाऊॅगी तब तो मैं जरूर जाऊॅगी .. .कौन कौन मुझे स्वप्न में पुकारता है .. मैं उन सपनों से मिलने. . हकीकत में अपने पैरौं पर चलते हुए जाना चाहूंगी ।

      मगर उसने देखा. . उसके पॉव  .. . . यह तो पहले जैसे साबूत नहीं थे. . .अब चलने के लिए . . इसे गाडी घोडा चाहिए. . .उडने के लिए हवाई जहाज ।.. पंख भी तो नहीं रहे मन के .. ।पराधीन. . वह जाए तो कैसे. . पंख विहिन हवा में उडे तो उडे कैसे. . . .मोम के ये नकली पंख . .उसे अब उडने कहॉ देंगे ।

  पक्षियों का भी दिल ललचा गया था .. वे भी उस अनुपम सुषमा के दिवाने हो उठे  .. तो .. दाना पानी डाल कर शीतल ने उन्हें भी वहीं बस जाने का अनुरोध किया।टाल नहीं पाए वे उन स्नेह सिक्त आमंत्रण को  ।छा गए सारे. . . भॉति भॉति के पखेरू .. . लंबी. .छोटी. . नूकीली .. चोंच वाली चमकीली .. मटमैली. . रंग बिरंगे पंखों वाले .. .दल बल आकर कोठी के सन्नाटे को मोहक सुस्वर से अनुगुंजित करने लगे ।बरामदे में बैठा पेपर पढता राजकुमार . . तो भी वे आ जाते. . कभी यूं  ही चहकने .. कभी कुछ कुतरने.  ..।

  राजकुमार . .को कोई भाव तो था .. नहीं .. ।ऐसी बात तो कदापि नहीं थी कि वह उन  आते जाते गाते टहलते बुलते . . अपनी भाषा में कुछ कहते सुनते पखेरूओं को नहीं देख रहा होगा. .  .. मगर मोटे मोटे चश्मों के नीचे पचा जाता और शब्द का तो वह दुरूपयोग करता ही नहीं था ।

  माधवी ने फोन किया था .. फातिमा अब नही रही  .. ससुराल वाले जेल में हैं. .  . .. .बस. . .सहेली  भी शब्दों को सीकी के ढक्कनदार डब्बे में बंद कर के रखना सीख गई  थी. .क्या. .. . . ।तुरत रख दिया फोन बिना आगे पीछे कुछ बताए . ..तुझे क्या तकलिफ हो गई मुझसे. . मात्र सूचना देना था क्या. . ।हे भगवान मैं इतनी तन्हा क्यों . .।कुरसी पर बैठते ही उसने सोचा. . उसने ही क्या ऊर्जा दिखाई थी. .  .. आवाज सब कुछ बतला देती है. . भीतर की अतल गहराईयों का भेद भी  .. .।सहेली ने उत्साह में नहीं  शोक में भरकर फोन किया होगा. . .दोनों की सच्ची सहेली थी वह. . .. . दोनो को सदमा बराबर लगना था .. शायद वह रोना चाह रही होगी .. फातिमा का नाम लेकर उसके सामने. . . . . उसकी उन बातों को याद कर .  ..जो मोगरा के फूलों की तरह दूर से ही महक  उठते थे. .  .. याद कर दिल को तसल्ली  देना चाह रही होगी .. .सोचा होगा शीतल चौंक जायेगी एकदम से.. .’क्या बक रही है .  ऐसा तूने सोचा भी कैसे.. . .. सिरफिरी लडकी. . .।’ मगर  . .शीतल ने क्या किया. . .कौन सा उत्साह दिखाया . ..।पहली बार तो फोन किया था उसने. .  .. शायद मायके में हो . . तभी तो मंमी से नंबर लिया होगा . ..वरना और किसके पास होगा उसका नंबर . ..।घबडा कर रख दिया होगा . . पता नहीं क्या क्या सोच लिया होगा .. .उसके शुष्क व्यवहार पर. . .शायद सोचा होगा .. दिमाग सातवें आसमान पर चला गया .. आदमी को आदमी नहीं समझती होगी  .. .पता नहीं  .. . क्या .. क्या . .कैसे एक वाक्य में ही फोन काट दिया .. जैसे उससे कोई बहुत बडी बेअदबी हो गई हो. . .।कैसे बढ गई ये दुरियॉ .. शब्द ही तो थे जो झर झर कर पहाडी झरने की भॉति .. एक एक बूंद  को अपने में पिरोए रखते. . .नए जज्बात पैदा करते  .. नई दिशा तलाशते. . . . नए सपने दिखाते. . .।

    उसके तो शब्द ही खो गए थे ।ऑखों की चमक बूझने लगी थी . . मेहमान के सामने बस मुस्कुरा भर देती । . .. . ‘तो फातिमा . . तुम चली क्यों गई .. ।’उसने अकेले में . . फूलों के पास खडा होकर पूछा था. . जैसे साक्षात उसी से पूछ रही हो. . .। ‘तुन्हारा तो प्रेम विवाह था न एक तरह  का .. .कालेज के गेटपर प्रतिदिन . . बिना नागा किए. . मात्र एक झलक दूर से ही देखने के लिए. . वह अपनी गाडी में चक्कर लगा ही लेता था. . हम कितने. . ईष्यालु होकर बोल पडते थे. . वाह भई. . नसीब हो तो .. हमारी फातिमा बेगम जैसा .. .नवाबों का वंशज . ..खूबसूरत शहजादा. . ड़ाक्टर. . एक पार्टी में महजबीं को क्या देख लिया .. दिल को जेट पर उठाए .. आशिकों के जमात में शामिल हो गया है. . . .।’फातिमा ऑखों में  मुस्कुराने की कोशिश  तो जरूर करती  मगर करीब से गुजर कर भी उस लाल गाडी की तरफ नजरें उठा कर नहीं देखती. .थी. . .बडा गरूर था उसे भी अपने हुस्न पर. . . . दिल में चाहत तो रही ही होगी. . ऑखों पर पहरा बैठा रखा था .. जालिम .. .।और जनाब एक दिन खुद फातिमा के घर अब्बाजान के साथ रिश्ता लेकर पहुच गए थे.. . .. । ‘तो . फिर क्या हुआ उस चिर प्रतीक्षित मोहब्बत का. . कहो न फातिमा.   कहो न मुझसे. .. ।’ अचानक शीताल को लगा .. उसके कलेजे में कुछ उमड घुमड सा रहा है. .  .. उसके कंठ अवरूद्व से हो रहे है . उसकी दोनो ऑखें न जाने कब से बेकरार थी बॉध तोडकर बह निकली.  .झहर झहर. . . थोडी देर तक़ . .।सामने खडी फूल  ..घबडा उठी उसे यूं  देखकर .. .उसमें थोडी कंपन हुई. . सिहर रही थी वह या हवा चल रही थी .. . या फूल ही बोल रही थी  । ‘प्यार कुछ नहीं है शीतल . .यह भी मन की ही एक भावना है. .  . . .इसे और भी ज्यादा विस्तार से समझने की जरूरत ही क्या.  .वह तो मस्तिष्क में ही समाहित रहता है. . किसी की  ऑखों में .. वाणी . .में व्यवहार में. . हर वक्त झलकता है. . बस मस्सूस करने की चीज है. .  . ..ये बडी कोमल .. बडी नाजुक  . .हकीकत के धरातल पर कदम रखते ही विलिन हो जाती है .. वायुमंडल में र्कपूर की तरह. . . कहॉ . .कहॉ .. ढूॅढोगी उसे. . .गॅूगे की गुड है. . यह. . कस्तूरी है. . मृग का. . .जबतक .. उसे दुनिया की चीजों का ऑच न लगे. . अखंड़ . जोत की तरह दिखता है. . .. जैसे ही उसे शब्दों के . .आचरण के तराजू पर तौलोगी . .वह तो गया . .फुर्रऽऽऽऽऽऽ वाष्प बनकर. . अनंत ब्रहंड में . .।

  फूल खामेश हो गई थी .. या शीताल ही विस्फारित नेत्र्रों से उसे ताकती शून्य में अटक गई थी ।  ‘सच तो कह रही हो तुम . .. . .फिर मलयानिल. . .ने क्यों कहा था .. .चॉद पर .. चिर प्रतीक्षित . ..प्रेमी. . .बॉहें फैलाए.. .  .सदियों से तुम्हारा इंतजार कर रहा है. . ।’

फूल चुप ही रही क्या बोलती. . या अभी शायद शीतल कुछ और सुनने के मूड में ही न हो .. उसका कहा तब तो व्यर्थ चला जायेगा . .. शब्दों को क्यों बरबाद करें अकारण. . .।

  मगर शीतल जिद पर अड गई. . .खडी खडी वहीं देर तक़ .  .देखते उस लाल पीले फूल को. . .सांझ घिरती हुई उस कोठी में समाने लगी तो चौकीदारों ने उसे परास्त करने   या रोकने के लिए सारे लाइट जला दिए थे. . ।साहब के गाडी की आवाज सुनाई पडने लगी थी. . तब फूल ने हडबडा के बुदबुदाया था. . .रात घिरने लगी है . .कल बातें करेंगे. . ।

रात बिजलियों से क्या डरती .. घिरती गई. . .हवा में नमी थी. . .बारीश .. के बाद वाली उमस से परेशान परेशान. . . . धरती. . ।ढेर सारे बादलों ने .. धमाधम   करके  .. मुस्तैद सैनिकों की भॉति .. आकाश का सारा मोर्चा संभाल लिया था .. .क्या बहादुरी क्या रणनीति .. थी. . एक भी टुकडी बिना बरसे हुए नहीं जायेंगी .. . इन्द्रदेव का फरमान था . . बारीश होने लगी खूब चीख पुकार के साथ .. तडातड चमकती बिजलियॉ फटाफट टकराते बादल. . बिजली और बादल की जुगल बन्दी. . ओलों की बौछार .. सब मिल कर शिव का तांडव न बन जाय . . डर गई थी. .वह..... .।  हालाकि बदमाश हवा खामोश हो गई थी . मगर रात भर बारीश मोटे मोटे धारों में होती रही । किसी को शिकायत का मौका नहीं देना है. .कि इस बार पानी नहंी बरसा .।बादल हॅस रहे थे  . .. बरसते तो  हम हर बार हैं .. यही सोच कर कौन हमारे लिए बॉह फैलाए खडा रहता .. है . .हमारे प्रेम को क्या जाने पृथ्वी वाले . .थोडा भी परवाह नहीं कि संभालकर रखें  . .इन अमृत बूंदों  को . .. . लापरवाह . .. फिर समुद्र और रसातल को दोष देते है. . . ।शीतल ने उनकी बातें सुनी थी ।सच ही तो कह रहे थे ये .. .बदनाम करने  वाले भी तो मनुष्य ही हैं जो अपने आप को महानता के शिखर पर . . विकास  के मानसरोवर पर खडा महसूस करते हैं   । प्रगति के नाम पर प्रकृति का दोहन करने वाले. . ।ग्लोबल वार्मिंग़ . ओजन परत में छेद. . .न जाने क्या क्या ..  .. .आरोप .. प्रत्यारोप का पुलिंदा का आस्वादन . . यह नहीं कि एक एक हाथ. . दस दस पेड ही लगा दे. . आने वाला वक्त याद रखेगा. . .पेड पौधे भी तो रोकते हैं  पानी का क्षरण .. ।

  रात भर बादलों की मनमानी चलती रही .  .न कोई .. थाना न पुलिस. . ..किसका डर . .कौन पकडता उन आवारों को . ..तो इन्होंने खूब कहर बरपा . था. . कोठी के कंपाउंड में भी. . ..।

 सुबह  . सारे के सारे पौधे बेहोशी की हालत में नीचे गिरे पडे मिले थे. . .।हाय . .मेरा फूल.. . . .  शीतल . का दिल आर्तनाद कर उठा .. .कल शाम को ही तो बातें हुई थी उन से. . .  .गर्देा गुबार .में सने . . डाल से बिछड़ कर  .. ऐसे पडे थे जमीन पर मानो सदियों बीत गए हों.  .।

  चारों तरफ पानी जमा . . .गमले तो फिर भी बच गए. . थे .  मिट्टी वालों की हालत ज्यादा दर्दनाक थी. . पानी निकले वा सूखे . . कोई तो सूरत हो कि उनकी हालत बदले. . . .।उसके मुंह  से कोई भी शब्द नहीं फूट रहा था. . .मालियों ने आकर कहा .. दो तीन दिन में सब दुरूस्त हो जायेगा . .चिन्ता न करें . .. अब नए फूल लगने का मौसम भी आ गया है. .  सूरज मुखी .. . . गुलदाऊदी .. डाल्हिया.  गेंदा . .।

 मधुमालती की लता . .पोर्टिको से नीचे गिर कर बौराए हुए घुमक्कड की तरह लटे बनकर झूलने लगी थी. . .अंगरेजों के वक्त की पुरानी कोठी. . रूप भले षोडशी का धारण कर ले    थी तो अन्दर से बूढी ही. . ।हल्की हल्की बूंदी बाँदी  हो रही थी. . फिसलन भरी रास्तों में बडी कठिनाई से सीढी लगाकर .. छाता वाता .. लेकर .. सबने बांध छेक कर  उसे फिर से पुराना रूप दिया .।

   दादुर .. .झिंगुर. . .मेंढक़ . .आधुनिक़ . नहीं हुए थे. . .ये अपना पुराना वाद्य  यंत्र ही दत्तचित्त होकर बजा रहे थे. . पुराने आलापों के साथ. . .।पेडों पर भीगी . .भीगी गिलहरिया . .उछल कूद करती. . . पखेरू भी . .पानी के थमने की रफ्तार को भॉप कर  अपनी रफ्तार बढाने लगे थे. . दाना पानी .. के लिए व्याकुल. . .चीं .. चीं . .पीं  पीं. . .टर्र टर्र .. घर्र . .घर्र ..कॉव कॉव . ।

  सूरज ने मुॅह खोला तो कुछ और ही बातें सामने आईं. . इलाके में भीषण .. बाढ की खबर. . ।हालकि प्रशासन पहले से चाक चौबन्द. . ।मगर कितना . .. ।सोख लेगा सारा पानी अब. . . आ गए हेैं न देवता .. . उसने भुवनेश को नमन किया.  .।दिनकर ..  धीरे धीरे मुस्कुरा रहा था ..  . ..उसकी लाली उसे बडी शान्तिप्रदायक लगी. .थी. . .बदले में वह भी मुस्कुराई थी. .  .. याद आया कितने जमाने के बाद हृदय से वह मुस्कुराई थी. . कृतज्ञ हुई वह उनकी ।

   माली ने बडे फूलों वाले गमले . .कोठी के बरामदे में करीने से लगा दिया  .. ।उसने देखा लाल. . सूर्ख . .छोटे फूलों का गुच्छा उसे एकटक निहार रही है. . रोक नहीं पाई खुद को .. झपट कर पहुंच गई उसके एक दम करीब. . . ‘तू कैसे बची रह गई’ दिल से हठात निकल  पडा .. प्रमुदित हुई फूल.. ‘गैरेज की छत ने बचा लिया  था. . बहुत प्यार है न उसे मुझसे. . .कभी धूप. . कभी पाला .. कभी पानी. . .उसके होते मुझे कोई छेड नही पाता है न. . मैं भी तो निमग्न उसी में  . .. उसी को निहारती रहती हूँ ।’

   चिर प्रतीक्षित राजकुमार. . .उसका मन फिर भटका. . कहॉ है. . उसे कोई यूॅ टूट टूट करके    लुट लुट करके चाहने वाला .मुखमंडल पर पंक सी जमने लगी. . उदासी ऑखों की पुतलियों में सिमटने लगी. . उसे यूं टूटती देख . .फूल आगे बढी. .  ‘क्यों नहीं है. . कोई.. चॉद पर. . सदियों से तृषित . .चातक़ . ।’ चौंक उठी थी वह ‘ तुम भी जानती हो यह सब. . . . .मुझे तो लगा था क़ि . . ।’   ‘हॉ हॉ .. तुम्हें तो लगा था कि .. सिर्फ लाल गुलाबी पीले फूल को ही तुम्हारी खबर  थी.   . .बागीचे के हम सारे फूल तुझे बेहद प्यार करते हैं . ..क्योंकि तुम  भी मोहब्बतें लुटाती हो हम पर .. ।मगर तुम्हें शायद एहसास नहीं होगा. कि प्यार पाने के लिए खुद को मिटाना भी पडता है. . परवाने शमॉ में जल जल कर खाक हो जाते हें पर मुंह  से कुछ भी नहीं कहते. . चकोर चॉद को रात भर टुकुर टुकुर ताकता रह जाता है. .।चिर प्रतीक्षित राजकुमार. . . सदियों से आस लगाए .. बॉहे फैलाए.  .तुन्हारे साथ ही तो रहता है .. . . अब चॉद छोडकर . .जमीं पर आ गया है. . अपने में गुम. . हल्की सी कसक भी तो तुम्हाते दिल में उसके लिए नहीं है. . कितने सारे लोग हैं जो तृषित भाव से तुम्हारी ओर देख रहे हैं . .मगर तुम्हारा खौफ भी कम नहीं . सिर्फ चाहिए .. दोगी नहीं अधिकार के लिए कत्र्तव्य करने ही पडते हैं . ..वो फूल जो जान से प्यारा बना लिया था .. उसके बाद तुमने मुझमें आत्मिकता .. तलाश ली .. लेकिन क्या तुमने उन नए रिश्तों की ओर पलट कर कभी देखा भी. . जो. .हजार सपने संजोए थे तुमसे. . यह सब तुझे कहने के लिए मुझे वो लालपीले फूल ने ही कहा था उस रात. . जब वो बिखर रही थी. . ।  खोलो अपना पंख . .आजमाओं इसकी ताकत .. उडो उन्मुक्त उडान  . .तुन्हें तो ईश्वर का लाख शुक्रिया अदा करना चाहिए .. कि चॉद से उतरकर. . तुम्हारा  चाहने वाला तेरे सामने खडा है. ।’

 शीतल ने धीरे धीरे नजरें उठाई. .ऊपर क्षितिज में देखा.। . दायें कमरे के खिडकी का परदा हटा हुआ था. . नजर पडी. . राजकुमार. . पेपर हाथ में लिए तन्मयता से उसी को देख रहा था ।।

    डा0 कामिनी कामायनी ।


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