कतरा -कतरा सुख ।( हिन्दी कहानी )

 

            कतरा -कतरा सुख ।( हिन्दी कहानी )    कामिनी कामायनी   

मात्र तीन महीने में कोई यूं बदल भी जाए यह मुमकिन  हो सकता है , मगर सविता  बदल जाएगी ,ऐसा तो उसने स्वप्न में भी  सोचा  नहीं  था । ऐसा  हो कैसे सकता है , उसकी तो उम्र अभी और भी विकसित ,पुष्पित और पल्लवित होने की थी,उस पर वसंत की बौछारें अभी और भी आने वाली थी  । मेरा  स्तब्ध होना स्वाभाविक ही था   इस खौफ़नाक विचार को अपने दृश्य पटल से जबरदस्ती हटाने के ख्याल से ,एक विचार आया था , दृष्टि भ्रम हो  शायद, हो सकता है वह कोई और हो,मगर नहीं वह सविता  ही थी।  पीछे से ही  पहचान में आ गई थी 


   मैंने गाड़ी बिलकुल उसके करीब लाकर रोक दी थी । सौ प्रतिशत वह वही थी ,मगर मुझे देखकर उसकी आँखों में,पहले की भांति , चपलता की कोई बिजली  नहीं कौंधी  थी । हाँ, किसी बुजुर्ग दुनियादार की तरह बोलना नहीं भूली आप आ गई आंटी। मैं गई थी आपके घर पर । गार्ड ने बताया वे लो नहीं हैं बाहर गए हैं, देश के बाहर मैं भी उस दिन  बल्कि उस पल बहुत जल्दी में थी । से फिर से  आने के लिए कहा था । गाड़ी आगे बढ़ गई थी ,मगर मेरा मन उसके पीछे दौड़ रहा था । भूल गई मुझे कितने जरूरी काम से बाहर जाना था ।

     शायद वह कोई सोमवार था ,सुबह से कुछ बारिश भी हो रही थी ,मगर गरमी अपनी क्रूरता से तनिक भी नहीं डी रही थी । परेशान परेशान मै किंकर्तव्यविमूढ़ ,भांति भांति के उपायों के बीच समय के साथ संघर्षरत थी ।एक हल्की सी डोर बेल की आवाज हुई और वह दबी पाँव मेरे कमरे का दरवाजा खोल कर कुरसी के पास नीचे बैठ गई थी । कंप्यूटर के स्क्रीन से नज़र हटा मैंने उसे एक नज़र देखा था । वही सर्द , जर्द चेहरा ,बिखरे बालों को लापरवाही से समेट कर बनाया गया बया की घोसले नुमा जूड़ा,नाक में बुलाकी,मैले बेरंगे वस्त्र ,एक दम सुस्त सुस्त बरसों की बीमार हो जैसे । मेरे चेहरे पर एक तीव्र सी पीड़ा उभर आई थी। मैंने कुछ गहरी आवाज में कहा था, क्या बात है तू मुझसे क्या छुपा रही है? उसने अपना सिर झुका कर दोनों घुटनों पर टीका लिया था । कुछ देर के बाद बहुत धीरे से फुसफुसाती हुई सी बोली अंकल जी काम पर नहीं जाएंगे क्या ? आज छुट्टी है ,कल जाएंगे । सुनते ही कहा फिर  मै कल आती हूँ। और फिर तेजी से कमरे से निकल गई थी ।

  तरुणाई की असीम लालिमा लिए वह छड़ी सी पतली दुबली किशोरी जिस  अगस्त के महीने में हमारे सामने प्रगट हुई थी ,मैं क्या उसकी उम्र की सोसाईटी की कुछ  लडकियाँ और महिलाएं भी उसे देख कर दंग रह गई थी ।अपेक्षाकृत  अच्छे कपड़े ,शेपू किए अच्छे से बंधे बाल और चेहरे पर असीम लज्जा । समाज के उच्च वर्ण की बेटी तो है ही ,गोरी चिट्टी तीखे नैन नक्श ,काले काले लंबे बाल । अगर जनम दाता शरावी कवाबी न होता तो सामने के किसी स्कूल में यह भी सातवीं आठवीं में  पढ़ रही होती । मगर कुछ बच्चों का ऐसा प्रारब्ध  होता है कि जन्म देने वाले  ही घोर निर्मम  हो जाते हैं । अरे कब आई तुम अपने गाँव से ,कितनी बढ़ी हो गई है ,वाह। मेरा हृदय वात्सल्य प्रेम से हिलकोर मारने लगा था ।  शर्माती हुई सी कहने लगी, कल ही आ आई हूँ आंटी। सब लोग आ गए हैं । अब यहीं रहेंगे मम्मी पापा भी , । आ जाऊ कल सेजामैने ऐसे कहा जैसे उसे पूछने की क्या जरूरत ,यह घर ,पुजा के बर्तन ,अलमारियाँ  ,भगवान की मूर्तियाँ सब  उस का इंतजार अभी भी कर रहा  है ।

  मेरे पास और भी काम वाली हैं बदलती भी रहती है ,मगर इसको देखकर न जाने क्या मन में क्या भाव  उमड़ता है ,रख लेती हूँ  बतरा आंटी ने भी काम दे दिया ,उन्होने कहा ,आ जा बच्चे के साथ बस खेलना ,वैसे उनके पास भी दो दो है पहले से है ।  परिवार बड़ा है ,और घर में बिस्तर से लगी सासु माँ भी । मेरे हाँ कहने से उसका चेहरा मधुर मुस्कान से भर  गया ,और वह खुश हो गई थी  

  यहाँ कोई खास काम नहीं है ।  काम निबटा कर यह घंटों टीवी देखती है ।           आंटी कुमकुम भाग्य लगा दो न । सोनी चैनल के ढेर सारे धारावाहिक उसे पसंद थे । मैं तो देखती नहीं ,बता कितने नंबर पर आता है ? उसे नंबर नहीं पता ,मेरे हाथ से रिमोट लिया और दबा दिया । यहीं से आता है , नंबर मुझे नहीं मालूम । शरमा आंटी को ऐसे ही दबाते देखा था । मैं उसकी  बुद्धि पर चकित । तू एक क्लास भी नहीं पढ़ी है ,स्कूल का मुंह भी नहीं देखा ,फिर ये सब कैसे जान लेती है? ऐसे ही ,हमें मैसेज भी करना आता है मोबाईल तो हम अच्छे से  चला लेते हैं । उसकी इतनी प्रतिभा देखकर मैंने कहा था , तू मेरे पास बैठना ,मैं तुम्हें ए बी ,अ आ ,हिसाब करना  सब सीखा दूँगी।   तू बहुत जल्दी सीख भी जाएगी । तत्काल उसने हामी  भर अपनी रजामंदी भी मुझे दे दिया था। जब से बच्चे बड़े होकर अपने पढ़ाई लिखाई में लग गए ,मेरा एक यह शौक  भी पनप उठा था,घर बुलाकर इन जैसे बच्चों को पढ़ाने का ।   

   दूसरे दिन कौपी पेन लेकर,सुबह से ही उसका इंतजार करते हुए , मैं हाजिर ।वह आई ,थोड़ा बहुत काम निबटा कर लिविंग रूम में बैठ गई । अब  वह टीवी देख रही थी । फिर मुझे देखकर ,अनमने से मुसकुराते हुए वह मेरे करीब  आई । सामने रखा पेन लिया। मेरे कहने पर , कुछ कुछ देख कर अपनी कौपी पर उतारा । फिर मात्र पाँच सात मिनट में ही ,किसी और के काम का बहाना कर चाय नाश्ता कर ,भाग खड़ी हुई ।

    मैं भी  पीछा छोड़ने वाली कहाँ थी । मेरे रोज रोज की टोका टोकी से उसे टीवी देखने के असीम आनंद में विघ्न आने लगी ।एक दिन उसने घर में पैर रखते ही , खींझे स्वर में  साफ एलान कर दिया, आंटी!  मेरे पास ममी का भी काम है, पढ़ने का समय कहाँ  है? ।बुरा लगा , बहुत बुरा लगा ,मगर क्या करती ,मन मसोस कर मै रह गई । अपने जज़्बात पर काबू पाते हुए कहा था , तुम अपने भाई बहनों को लेकर आ मै उनको पढ़ा दूँगी  हाँ ,इसके लिए  वह जैसे तैयार बैठी थी ।

   सुंदर गोरे गोरे  बच्चे, भयानक उदण्ड  , तनिक भी स्थिरता नहीं , इसका कान वे खींच रहे हैं उसको वो धक्का दे रहे हैं ,आपस में हीं - हीं कर रहे हैं ,मगर मैं इस चुनौती के लिए तैयार थी ,इन्हें पढ़ाना था ,कुछ सीख लें इनका दाखिला पीछे के प्राईमरी सरकारी स्कूल में ,कविता के बच्चों की भांति हो जाएगा ,मन ही मन सोच रही थी मैं । मगर ,प्रकृति के मस्त बच्चे जिनपर कोई नियम कानून नहीं चलाया गया था अब तक ,सिवा मारपीट और गाली गलौज के ,  क्या पढ़ते ये । ,आंटी क्या खाने को देती रही है,इस पर बहुत ध्यान रहता  ,लेते और भाग जाते ।ये स्कूल भी नहीं जाते ,क्योंकि सरकार इनकी अगड़ी जातियों के कारण इन्हें कोई पैसा या प्रलोभन देने में कामयाब  नहीं दिखाई देती ।  फिर ऐसा हुआ कि बहुत दिनों तक उनका कुनबा ही सोसाईटी में नहीं दिखाई पड़ा ।  उनके आँखों से ओझल होने के कारण  दिमाग से बातें भी निकल गई ।

    मगर  बात उसकी ही  है । लड़की अच्छी है ,मेहनती है कुछ कुछ संस्कारी भी  है । अभी तक अच्छी तरह याद है जब पहली बार उसकी माँ  लेकर आई थी हमारे पास । दरवाजे पर  अचंभित सी खड़ी मैं , देखते ही चिल्ला पड़ी थी  , एक बित्ते की लड़की से काम करवाती है कैसी कलजुगी माँ है तू ।पता है ,बच्चों से काम करवाना बहुत बड़ा अपराध है ।  पुलिस पकड़ लेगी तुम्हें और मुझे भी ,

   उसका रूप रंग कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था । किसी  चार छह  साल वाले बच्चे  का मैला कुचैला निकर ,टी शर्ट पहने गंदे बिखरे छोटे बाल , घूर घूर कर देखती हुई ,गंदी सी लड़की थी वह । महल्ले भर में अपने आठ बच्चों के लिए बदनाम उस माँ की वह सबसे बड़ी बेटी ,और छोटी दो महीने वाली  माँ की गोद में । बड़े अरमान से  मेरे पास काम के लिए आई थी । मगर मेरा रौद्ररूप देख ,चुप चाप ,अपने उमड़े  क्रोध को मन में ही दबाते हुए  वे  बड़े मायूस होकर दरवाजे से नीचे ,सिढियों से उतर गई थी ।यह मेरी प्रकृति है , मैं क्या करूँ ,बच्चों से काम करवाना  मुझे अत्यंत नापसंद है । यह मुझे बहुत बड़ा अत्याचार सा दिखता है ।

पड़ोसियों ने कहा था , यह लेडी बहुत लड़ती है ,लुतरी भी लगाती है इस उस घर में। अर्थात उसकी माँ  का रिपोर्ट कार्ड कोई खास अच्छा नहीं था । महिलाओं का ऐसा मानना था । फिर भी उसकी जाति के साथ कुछ अच्छे गुण और कर्मठता की वजह से उसे कुछ लोग  काम जरूर दे देते ,जब तक रहती है बिना नागा किए जी जान से काम करती है  ।बेटी  अपने माँ के साथ मिलकर या  अकेले ही पाँच पाँच ,छह छह घरों में काम करती थी ।  

  चिड़ीमार सी महिला जीवन के भयानक संघर्ष से तप , महानगर में आकर बहुत चालक हो चुकी थी । अपने  आठ छोटे बच्चों के साथ ,उनकी हारी बीमारी के साथ कैसे रो रो कर जिंदगी काट रही है। ऐसा सोच कर मैं बहुत परेशान हो जाती थी।  

    ऐसी ही किसी  गर्मी की  एक भरी दोपहर में मालिश करते हुए उसने मुझे अपनी जिंदगी के कई बदरंग चिथड़े  दिखाए थे ।

   समाज के इस पायदान की लीला ही न्यारी है ।  यहाँ जिंदगी के मर्मस्पशी पन्नों पर लिखी गई कहानियों की कोई जाति ,वर्ण ,मर्यादा या मजहब नहीं होता ,मगर संवेदनाओं से लबालब भरी हुई विविधताएँऔर उन विविधताओं से भरी कहानियाँ , तो  भरपूर होती ही है । खाते पीते घर की बेटी थी ,और जब पिता ने उसकी शादी की ,उस वक्त ससुराल भी सुढृढ़ ही था ,न बहुत ऊंचा  न बहुत नीचा ,आठ  से अधिक ही  बीघा खेत था ,आम का बागान था ,पक्का घर था ,ससुर नैमिष्धाम में पुजारी ,और ये तीसरा  बेटा तो गाय समझो! एक टुकड़ी सुपारी तक नहीं छूता था ,और दारू मांस  ली जैसे अमल की बात  तो बड़ी दूर की कौड़ी  थी ।

   किसका पाप, कौन सा ग्रह था क्या  मालूम , सास के गुजरते ही बुरी नजर उसके परिवार पर लगनी शुरू हुई।  दूसरी शादी के बाद  ससुर ने ही  चुप्प चुप्प ,अपने बेटों से बिना बताए ,खेत बेचना प्रारम्भ  कर दिया था । मैंने  कहा था   तू कौन सी भाषा बोलती है ,आधी तो मुझे समझ में ही नहीं आतीमेरी टोक पर वह किसी अभिजात्य स्त्री की तरह हँसती ।  गंवई  भाषा ही बोलती हूँ न ।उधर सीतापुर तरफ ऐसे ही तो बोलत हैं 

     कई कई महीनों में,कई कई किश्तों  के आधार पर , अंत में उसकी राम कथा मेरी समझ में  पाई थी अथवा यूं कहें कि मैंने उसकी कहानी को अनेक प्रकार से सिर पैर से जोड़ कर उसकी   व्यथा को शब्द देकर समझा था । तू तो गज़ब की शक्ति वाली है । शरीर में दम नहीं है, अक्षर पहचानती नहीं,अनपढ़ हो लेकिन  क्या  बुद्धि है अपनी तारीफ पर वह  वह हँसती,खुश हो जाती । बच्चों को पालना है न दीदी । क्या करती ,’ सौतेली सास बड़ी जल्लाद है ,मोटी तगड़ी ,खाट पर बैठी पाँव हिलाती रहती है । देखती भी नहीं नजर भर सौतेले बच्चों की ओर ।बड़ा दुख दिया ,दाने दाने को तरसे ।  चार बच्चे तो हमारे गुजर गए , वहीं उसी घर में ,दवा दारू  के बिना , मैं चौंक उठी चार बच्चे ! कितनी उम्र है तुम्हारी? बारह बच्चों की माँ लगती तो नहींमगर शायद उसने कुछ सुना नहीं ।बिना कुछ कहे  पैसे लेकर वह जाने के लिए बेताब थी ,उसकी बेटी  आ चुकी थी , वह मेरे घर नहीं आती थी डरती थी मुझसे   । बेल बजा कर खड़ी चुप ।    शर्मा आंटी के घर देर हो गई ,बतरा के घर अब नहीं जाऊँगी, चार सौ वाली का काम मैं नहीं करूंगी बहुत गाली देती है । ।दरवाजे पर ही बेटी की क्रोध के  अंगार से दहकते लावे जैसे  शब्द सुनाई पड़ने लगे थे । स्वाभाविक ही था घर जाने के नाम पर दोनों के पैर में क्के लग जाते थे । तब माँ को अपने और बच्चों की यादें  बहुत तेजी से सताने लगती थी । वे लगभग दौड़ती सी सोसाईटी के गेट से निकल जाती थी ।

   माँ  मंजु जब भी आती है ,अपनी बड़ी बेटी सविता  की ब्याह के  ब्योंत में वैचारिक रूप से लगी रहती है ,कई घरों से वचन ले चुकी है पचास हजार तक का । शादी ? अभी तो यह इतनी छोटी है ,मुझे पहले बहुत आश्चर्य हुआ था । इतने सारे बच्चे हैं ,चार बेटी ,किसी तरह पार लगा दूँ न दीदी । गाँव में  तीन कट्ठे में सफेदा का पेड़ लगा है ,दो तीन  लाख वहाँ से मिल जाएगा ,कान  में

  ,गला में सोने का, पैर में पाजेब चाँदी का  बना के सब अपनी मम्मी के पास रख दिया है ,क्या करूँ ,आदमी दारुबाज़  है ,बक्सा पेटी तोड़ कर , बेच बाच कर पी लेता है

  मंजु आई आज उसका जी बड़ा भरा हुआ था । तीन दिन के बाद आई थी ,रोने लगी क्या करूँ दीदी,दारू पीकर आता है  ,जवान बेटी के सामने गंदी बात करने लगता है, हमने तो बाहर धक्का मार के निकाल दिया  दरबाजा बंद कर लिया  ,तो वहीं बाहर बैठा ,दोनों माँ बेटी को भद्दी भद्दी गालियां  बकता रहा था ।  सब बना खाना फेंक दिया ,बच्चे भी भूखे रहे रात भर । आश्चर्य ! इस समय वह फिर से गर्भवती  भी थी ।  

  बहुत दिनों तक फिर उसका कोई पता नहीं चला था । कोई खबर  नही कहाँ गई । मैं भी परेशान होकर क्या कर लेती । वैसे मैं किसी फोन नंबर लेने की भी अभ्यस्त नहीं हूँ ।

   दो साल बाद एक दिन फिर से मंजु दरवाजे पर खड़ी थी । उसने लाल रंग की साड़ी पहना था,लाल दप दप सिंदूर से पूरी मांग भरी थी , आँखों में काजल भी लगाए थे  , और होठों पर लिपिस्टिक भी  बड़ी अच्छी लग रही है । वैसे कहाँ चली गई थी ?  उसने मेरे पाँव छूए गाँव में भी खेती   बाड़ी देखनी होती है दीदी ,मगर अब ठेके  पर खेत लगा दिया है अब यहीं रहेंगे सब  फिर मेरे गंभीर चेहरे को देख बोल उठी , बिटवा हुवा है,अब की बार हमने कौपर टी लगवा लिया है ,अब बीच में नहीं छोड़ूँगीआप का काम ,निश्चिंत रहो  

   उधर इन दो सालों में सविता का कद भी निकल गया था ,बाल लंबे हो गए थे , घर में रहने की बजह से शरीर भी कुछ निखर गया था ।  वह सुंदर दिखने लगी थी । धीरे धीरे मेरे घर आने लगी । मगर चुप्प ही रहती ।

   इस छोटी बच्ची के साथ मैंने एक सहेली एक माँ का रूप अख़्तियार किया । धीरे धीरे इसका आक्रोश कुछ कम हुआ ,और यह हंसने बोलने जैसे स्वाभाविक भावनाओं से परिपूर्ण  भी लगने लगी  थी । अब यह मेरे पास आकर बे झिझक रो भी लेती ,कैसे बच्चा समझ कर उससे आंटियाँ  घंटों तक काम करवाती रहती हैं,कैसे छोटी छोटी गलती पर थप्पड़ भी चला देते हैं । पैसा काट लेते हैं ,चोरी का इल्जाम लगा देते हैं । आंटी ,मेरी माँ को मत बताना ,वो मुझे ही गाली देगी। ओह उसके अंदर का बच्चा कितना डरा हुआ था। इसे तो अपने माता पिता भी प्यार नहीं देते ,और परिणाम स्वरूप दिन पर दिन यह उदण्ड ,आक्रोशित और गुस्से में रहने लगी थी । अपनी माँ से जब कभी बात करती ,लगता उसका खून पी लेगी । माँ बेटी दोनों भारी भारी गालियों से ही एक दूसरे को संबोधित करते थे । मगर दोनों के दोनों मजबूर ,उन का परिवार ,बेटी की कमाई के वगैर कहाँ चलने वाला और बेटी की उम्र भी कहीं भागने योग्य नहीं ।

  दीदी पैसे दे दो महीने का ,गाँव में बहुत जरूरी  आन पड़ा है  ,बेटी सधा देगी काम कर के  सभी जा रहे हो ,तो यह अकेली कहाँ रहेगी ? मुझे ताज्जुब हुआ था रह जाएगी कोठरी तो है ही, मामा ,चाचा भी पास पास ही तो है

और इसके कुछ ही बाद ,एक दिन मेरे पास अपनी माँ से भी छुपा कर रखा अपना सारा जमा पूंजी उठा कर बेटी भी चली गई थी अचानक ,बिना कुछ भी बताए ,जाना है तो जाना है । ये लोग अचानक क्यों चले जाते हैं, मेरे भी मन  में खुद बुद होता रहता था ।

  पाँच महीने के बाद आई सविता   आंटी ,ममी को बेटा हुआ है , । समझ नहीं आया क्या उदगार प्रकट करूँ ।कौपर टी की बात इससे क्या करती , मगर चेहरे पर प्रसन्नता लाना ही पड़ा था ।

इससे पहले की मैं कुछ कहती वह घर की सफाई में लग गई । याने की इस घर में उसका काम पक्का ही था ।

  कुछ समय पश्चात   बच्चे को लेकर मंजु आई थी ,नव रात्र में ,अष्टमी के दिन ,ढेर सारी कन्याओं के साथ महल्ले भर की इकट्ठे कर के लाई हूँ ,चार पाँच घरों में बुलाया गया है। इसमें उसकी   सात  और चार साल की बेटियाँ अच्छे वस्त्रों में गज़ब की चमक रही थी ,गोरी चिट्टी बड़ा सा कपार ,पैर में जूते मौजे , मंजु की गोद में छह मास का बेटा बार बार नीचे उतरने के लिए तड्फड़ा रहा था ।

  किस समाज को कौन दोषारोपित करे ,यह समझ में नहीं आता ।

 का भेजे इसकुल ? इनको स्कूलों में कोई पैसे या वर्दी वगैरह नहीं मिलते,ऊपर से खुद खर्च करो । ,इसलिए स्कूल इनके लिए कोई आकर्षण का केंद्र नहीं है । एगारह वर्ष के  बेटे को मिठाई वाले दुकान पर लगवा दिया गया है ,लेकिन रिकशा चलाने वाले पिता को जब पहले के लिए कर्ज चुकाने के बाद पीने के लिए पैसे नहीं मिलते तो वह छोटे बड़े किसी का लिहाज नहीं रखता ,जहां मिला वहीं हाथ मार लिया ।

 अबकी बार मंजु एक बार भी बेटी की शादी की चर्चा नहीं कर रही थी ,जब कि वास्तव में वह  उसके लिए चिंता का विषय होना चाहिए । कब करोगी शादी सविता की अभी कहाँ ? पहले पिछले कर्जों को तो चुका लें ,नहीं तो खेत भी बिक जाएगा । उसका शिथिल सा रूखा रूखा जवाब होता ।

   आठ दस घर का काम है ,माँ तो हमेशा पलायित ही रहती है ,कभी बच्चे पैदा करने के लिए ,कभी ऋण चुकाने के लिए । अपना सारा भार वह  इस नन्ही कमजोर ,मगर विद्रोहिनी के हाथों में सौंप देती  है ।

 सविता को देख कर उसकी मनोदशा  भाँप कर मेंने उसे ढेर सारा प्यार देना शुरू किया । भूख लगी हो आके खाना बना कर खा लो ,चाय पी लो ।आराम करो ,टीवी देखो ,मैं तो दोपहर तक   अकेली ही रहती हूँ

,घर में बंद रहने से सम्पूर्ण  दुनिया रामराज्य ही नजर आती है , और सभी धर्मराज के अवतार ।

    सविता नहीं आएगी क्या आज   ? पूछने पर बन्दना बताती है , उसके पापा को पुलिस पकड़ कर ले गई रात में ,सविता  ने ही पुलिस को फोन करके बुलाया था । बेटे का पैसा जो माँ छुपा के रखी थी, छीन कर ले गया था और शराब पी कर लौटा था बड़ी  मारपीट गाली गल्लोज़ किया ,बस इतनी सी बात है बाद में चाचा मामा ,के साथ जाकर थाने में पैसा देकर उनको छुड़ा कर लाई   बाप शराब पीकर जब रात में माँ को मारता है और गंदी गालियों के बौछार से अड़ोस पड़ोस का मनोरंजन करता है ,तब सारे बच्चे सहम के एक किनारे खड़े हो जाते हैं ,मगर सविता  माँ का पक्ष लेकर बाप के सामने खड़ी हो जाती है ।धक्का देकर घर से, कोठरी से बाहर भगा देती है । सविता  की चाची है ,वंदना जो मात्र दो ही दिन में सविता के  घर की तस्वीर बदल देती है ।इसके अनुसार   दोष सारा उसकी माँ की है ,बदजुबान,है ,पति को जूते के नोंक पर रखती है ,उसकी इसी बदनामी के चलते परिवार  में उससे कोई संबंध नहीं रखता ,  बेटी की शादी भी तय होकर कट गई । पड़ोस के गाँव से इसके मायके वाले ही आकर पड़े रहते हैं। बुड्डे ससुर  से झगड़ कर पुलिस बुला लिया और बेटी पर बलात्कार का आरोप लगवा दिया। मुझे समझ में नहीं आता किसपर विश्वास करूँ। काया एस भी सच हो सकता है !

 

  मैं क्यों किसी की फटी में आँखें गड़ा कर देखना चाह रही हूँ । यह तो दुनिया है । जहां मात्र मत्स्य न्याय है। बेटी को जो थोड़ा सा भी साथ मिलता है माँ का ही ,वह उसे अपना सब कुछ मानती है ,मगर माँ के लिए वह कमाई का जरिया है ।उसने खुद ही कभी कहा था , दीदी ,उस सोसाईटी वाली पूरे दिन के लिए सविता को काम पर रखना चाहती थी ,हमने तो मना कर दिया ,भई,दस घर से दस सामान आएगा ,एक घर से क्या हो जाएगा

  अबकी बार ,  होली के बाद इसकी शादी कर दूँगी ,मेरे पापा ने देखा है लड़का ,खेत है ,दरवाजे पर पिता का दुकान है ,सामने गाय बंधी है ,सुखी है ,तीन भाई तीन बहन है ,लड़का बड़ा है ,लेकिन दो लाख नगद और एक स्कूटर तो पहले ही माँ लिया बाद में और सामान भी चाहिए , खर्चा तो बहुत आएगा लेकिन लड़का छोड़ने वाला नहीं हैमंजु इस बार बहुत गंभीर स्वर में मालिश करते करते बता रही थी । कहाँ कहाँ से कैसे कैसे रकम जुटाएगी बहुत देर तकअपने आप को समझती हुई सी  बुबुदाती रही थी ।

    अचानक एक  दिन  वही सब बहाना लिए एडवांस पैसे लेकर बेटी से सधवाने की बात कह कर वह सीतापुर की बस पकड़ने आनंदविहार जा रही थी ।

    अभी जनवरी शुरू ही हुआ था ,मार्च तो बहुत दूर है । इस ठंढ में क्या करेगी । छोटी बहन की तबीयत बहुत खराब है ,उसको बहुत बुखार था ,माँ पापा सभी गाँव चले गए उसे डाक्टर को दिखाने । अचानक से यूं चले जाना काफी रहस्य मय लगता था । सविता  के मुंह पर जैसे कोई बहुत बड़ा ताला जड़ा था । अपने घर के बारे में वह कभी भी  कुछ नहीं बोलती थी । मगर कपड़े धोते समय ,सुखाते समय कई बार मेंने उसे चुप चुप कर रोते देखा था ।

  आंटी मेरे कुछ पैसे आप रख लो ,मम्मी को मत बताना। मैं ऐसा बैंक बहुतों की बनी हूँ । मुझे पता है ,इनकी हाड़ तोड़ मेहनत की कमाई पर कौन नहीं  गिद्ध दृष्टि लगा बैठा रहता है । घर से बाहर तक अपनों से पराए तक । पिता , वह माँ ,भाई ,बहन ,पति ससुराल वाले,पुरुष मित्र,  कभी कोई वही पड़ोसन ,जिनके घर को अपने घर से ज्यादा महफूज समझ कर रखती है , सारा का सारा डकार जाती है ,और मांगने पर तन के कपड़े भी तार तार  करने से नहीं चूकती ।

  आंटी! मेरे पापा आए हैं ,उनको पैसे देने हैं बहुत कर्ज हो गए हैं अवाक मैं ! फिर तुम्हारे सारे पैसे शराब में उड़ा देंगे । मैं घबड़ाई थी । जाने दो आंटी ,बेचारे के पास पैसे नहीं हैं ,महाजन सब जीना हराम कर दिया है,रोज घर पे आकर सबके सामने गाली गाली गल्लोज़ करके जाता है अचानक उसमें मुझे उसकी दादी की आवाज सुनाई पड़ने लगी थी , एक माता का अपने नालायक पुत्र के प्रति भी असीम प्रेम । हालाकि मैं उसे क्या जानूँ। उसने तह लगा कर लिफाफे से अपने पंद्रह हजार रुपए ले लिए थे । यह पैसा वह अपने सोने के चैन बनवाने के लिए रखी थी ।

  “ आंटी !  इस बार सर्दी के बाद हम लोग यहाँ नहीं आएंगे ,पापा कानपुर में ही रिक्शा चलाएँगे ,ममी भी उधर ही कोई काम ढूंढ लेगी’, ऐसा कह कर जाने वाली वह सबको जता चुकी थी कि अब दिल्ली बस आखिरी बार  ही है ।

 

  जून जुलाई के बीच का समय था ,कुछ बारीश ,कुछ गर्मी ,कुछ उमस ,मौसम अपने मिज़ाज के अनुसार करवट बादल रहा था । सुबह के आठ नौं का समय रहा होगा ,दरवाजे पर बेल बजा । जब तक मैं अपने कंप्यूटर से उठ कर बाहर ड्राईङ्ग रुम तक आती ,उससे पहले पतिदेव ने दरवाजा खोल दिया कर बंद भी कर दिया था । कौन था ? का जवाब मिला वही छोटी सी लड़की  जो तुम्हारी बड़ी लाड़ली थी ।  मगर वह है कहाँ ?” पता नहीं क्यों ,मुझे देखते ही भाग खड़ी हुई। ओ ,सविता है आप के सामने उसकी बोलती बंद हो जाती है ,तभी पूछती आंटी अंकल तो दफ्तर गए  हैं न ।

    दूसरे दिन जब वह कुछ और देर से अंकल के दफ्तर जाने के समय का हिसाब लगा कर आई ,तो मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था कैसी हो गई तू? सुख कर ,चेहरा भी काला । अरे शादी कर ली क्या ? बालों के पीछे हल्का सा सिंदूर छुपा देख में खुशी से चिल्लाई तो उसने शरमा कर सिर झुका लिया था । अब तो तुम्हें और भी खुश रहना चाहिए ,मगर यह क्या?

  गाँव  में धूप में घूमती हूँ न ,इसलिए सी हो गई । फिर टुकड़े टुकड़े में जाना था ,उसके नई जीवन की नई नई कविताओं को । ससुरा  में बीस दिन रही ,ननदें देवर ,सास ससुर सभी बहुत अच्छे हैं । कोई काम नहीं ,बस बैठे बैठे खाना बनाना और खाना   सुबह अंधेरे में ही सास उठा देती थी ,घर में संडास नहीं है ,तो बाहर जाना होता है । यह मुझको अच्छा नहीं लगता है । गाँव में हमारे घर पर तो हमने पक्के का बना रखा है

    अब वह धीरे धीरे अपने पति के बारे में कुछ कुछ बोल जाती ,वह भी मुसकुराती हुई । अच्छा है वह ,सीधा है ,आंटी उसका फोटो देखना है । मैं उसके मोबाईल स्क्रीन पर झाँकती हूँ । सन्न ! एक धक्का मुझे और लगा । मैं चुप्प ! वह समझ गई मुझे कोई खास पसंद नहीं आया । मगर मैंने जल्दी से बोला दिया ,  अरे यह भी तो बच्चा सा दिखता है तुम्हारी तरह । अच्छी जोड़ी है । वह सिर नीचे झुका कर मुसकुराती हुई बालकनी में चली गई थी ।

   सविता  अब पहले की तरह सुंदर दिखने लगी थी । मैंने बड़े प्रयास से उसे हँसना बोलना सिखाया था । उसमें आत्मविश्वास के बीज डाले थे और उसे अपने प्रेम से सींचित किया था । उसे प्रसन्न देखकर मुझे बहुत खुशी होती थी ।

  अब सोसायटी की सीढ़ियों ,पर ,पार्किंग में ,लिफ्ट में ,जहां भी मौका मिलता वह फोन पर चिपकी नजर आती थी । कभी उसकी आवाज बंद दरवाजों को पार करती हुई मेरे कानों तक भी आ जाती । घर में काम करते हुए उसके फोन बज उठते तो बौराई सी  वह सीधे बालकनी में भाग कर बातें करने लगती । किसका इतना फोन आता है। इस वक्त उसके चेहरे की गति एकदम विकृत सी लग रही थी । अरे आंटी ममी थी ,। मगर जब कौशल का फोन आता तब चेहरे की लालिमा खुद ब खुद बयान कर देती । आंटी कल की छुट्टी और चार हजार रुपए दे दो ,गाजियाबाद जा रही हूँ

   सविता अब फिर से  बहुत परेशान रहने लगी थी। मेरे सामने तो कुछ नहीं बोलती मगर ,उसके चेहरे की लकीरें साफ बता रही थी कि वह भीतर से कतई  सामान्य नहीं हैं । एक दिन मेरी नज़र उसके बालों पर जम गई अरे यह क्या ,तुम्हारे बाल तो बड़ी तेजी से गिर रहे हैं लगभग गंजे से होते उसके सिर को देख कर मैं परेशान हो गई थी । उसने कोई  जवाब नहीं दिया था ।मैंने इधर उधर से जानकारी इकट्ठी करके उसके बालों के लिए कुछ दवाईयां खरीद लाई थी ।

आजकल तुम्हारा फोन नहीं आता मम्मी से मैं बात नहीं करती और कौशल का?’ उससे भी झगड़ा हो गया

 काफी दिन हो गए मैंने उसे कहा तुम बात करो कौशल से ,यह कौन सी बात हो गई जो इतना ज्यादा गुस्सा हो मैं क्यों करूँ। भयंकर उपेक्षा और लापरवाही से उसने घर के बाहर जाते हुए कहा था । 

  आज बहुत दिन के बाद वह टीवी  देखने बैठी थी । मगर चेहरा खुश नहीं था । मैंने उसे चाय और नाश्ता का प्लेट पकड़ा दिया ,तो उसकी आँखें फूट पड़ी थी । रहने दो आंटी मेरा मन नहीं है तुम्हारा मन नहीं है ? क्या हो गया तुम्हें सविता ? बेटे मुझे कुछ तो बताओं ,मैं किसी को नहीं बताऊँगी। फिर तो वह ज़ोर ज़ोर रोने लगी थी । उसकी माँ और सास दिन भर फोन पर लड़ती रहती है ।उसे दहेज का मोटर साइकिल चाहिए जल्दी । सास अपने बेटे को भी मना कर दी है , बात नहीं करने के लिए मुझसे । मुझ पर गलत गलत इल्जाम लगाता है ।

  उसकी माँ बड़ी तेज है । मम्मी ने मुझे मना किया उनलोगों से नहीं बात करने का । अब धीरे धीरे पैसा जमा होगा तब तो स्कूटर देंगे । उसकी माँ कहती है ,अपनी बेटी की कमाई खा रही है

  इधर मौसम का मिजाज बदल रहा था ,हमें भी  अपने  बच्चों के पास जाना था  एक दिन ढलती शाम को हम यहाँसे   निकल गए थे ।

    अपने इर्द गिर्द घूमते संसार को देख कर मानस पटल पर अनंत तस्वीरों का बनना बिगड़ना स्वतः अहर्निश प्रवाह के रूप में चलता रहता है ।पर  मन कभी कहाँ ठहरता है , इधर उधर भटक कर वापस अपनी खोली में आ जाता है । आधुनिक पढ़ाई ने मानव जीवन को इतना जटिल कर दिया है ,भांति भांति के बेड़ियों के आगोश में दबा ,वह खुल कर जीवन का आनंद नहीं ले पाता ,मेरी ऐसी धारणा बन गई थी  । बचपन का आनंद उठाने वाले वे प्रकृति के संतान जिन्हें किताबों के पन्नों में अपनी अमूल्य क्षण नहीं गवाना पड़ता ,मुझे वे बड़े अच्छे लगते । प्रकृति के हर अनमोल तोहफे का आनंद उठाती जिंदगी ।

 यायावरी से अटकते भटकते हम वापस महानगर की अपनी खोली में आ गए थे ,झूठी सभ्यता का मुखौटा पहने हुए लोग बाग ,हॅलो हाय कर गले तो लगा लेते हैं ,मगर उनके दिल में शायद कोई स्पंदन नहीं होती होगी ।

   गार्ड ने दो लड़कियों को भेज दिया था । घर गंदा था ,काम तो लेना ही था । मगर मुझे इनके   साथ माथा पच्ची करना अच्छा नहीं लगता था । भांति भांति के बहानों, झूठी कहानियों से कुछ ही दिन में उन लोगों ने मेरी मानसिक अशांति बढ़ा दिया था । पतिदेव समझाने लगे इनकी मजबूरियाँ भी तो सोचो । ये भी तो आखिर इंसान ही है । मुझे समझ में आ गया था ,प्यार तो शायद इनको जन्म लेने के कुछ महीनों तक ही मिलता होगा ,बाकी तो जिनगी के धरातल पर जीने की लड़ाई घर से ही शुरू हो जाती है इनकी । चलो ,कुछ प्यार बांटते चले। अब वे भी कुछ घुलमिल गई थी । अपने घर के बारे में ,अपनी जिनगी के बारे में बहुत सी बातें बता जाती थी । और मेरा मन उन्हीं कपास को ओटना शुरू कर देता था । 

   ऐसे में अचानक सविता  का फिर से आ जाना मुझे अच्छा तो लगा था ,मगर यह भी सोच रही थी ,पहली वाली को  कैसे क्या जवाब दूँगी । मगर सविता तो इसे अपना घर समझती थी ,आंटी , बत्तरा आंटी ने तो हमें तुरत रख लिया आप भी कपड़ा वाला काम दे दो “।“ वैसे हमरे  कपड़े तो मशीन से घुलते हैं , चलो कोई बात नहीं । मगर तुम्हारी ऐसी हालत क्यों हो गई ? क्या कौशल से अब भी झगड़ा चल रहा है ?”

  कौशल ने दूसरी शादी कर ली”।  उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । क्या ?आश्चर्त्य से  चिल्लाने की मेरी बारी थी । हाँ अपनी पहचान वाली लड़की से ही कर लिया ,उसके  रिश्ते में भी कुछ लगती थी ,पहले से चक्कर थाअचानक  सारे शब्द समाप्त हो गए थे  मेरे पास  के ।  इतनी छोटी सी  लड़की , समस्याओं की इतनी बड़ी गठरी लिए । अभी पिछला कर्ज भी नहीं चुकाया गया होगा , आठ बरस की उम्र से रात दिन अपनी माँ के साथ काम कर कर के ,पैसे कमाए ,गाँव में  पक्के का दो कमरा बनवाया ,सारा समान जुटाया ,गहने बनवाये । भाई बहनों को माँ के समान संभाला । मन में धीरे धीरे बहुत सारे सवालों के छोटे छोटे कोंपले फूटने लगे थे । बहुत देर तक हम दोनों चुप रहे थे ।

  आंटी वो कमीना था ,मैंने उसको कितने पैसे दिए ,गाजियाबाद में उसकी नौकरी छूट गई थी ,मैंने अपनी ममी से चुरा कर उसे पैसे दिए थे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था ,क्या बोलना है । अब क्या करोगी तुम ?’ आंटी मैंने भी दूसरी शादी कर ली। अपनी जाति का ही है । पहले भी वो करना चाह रहा था ,मगर मैंने मम्मी के खातिर मना कर दिया था । इसमें भी पैसे खर्च हुए होंगे ?” नहीं बस थोड़ा बहुत ,बस उसके मां बाप ,और हमारे माँ बाप ,मंदिर में हो गई । आंटी वो बहुत अच्छा है । अल्मोड़ा  में नौकरी करता है अचानक से न जाने क्यों और क्या सोच कर मेरा मन एक म हल्का हो गया था ।

  वास्तव में समय तेजी से बदल रहा है , समाज ने  क्रांतिकारी रूप भी अख़्तियार कर लिया है । महिलाएं भी अपनी लड़ाई खुद लड़ने लगी हैं ।  संविधान के नियम कानून , थाना पुलिस ,कोर्ट कचहरी से पृथक भी इस देश में न्याय व्यवस्था है । इसे अपने स्तर से पाने के लिए कभी कभी लोग भयंकर से भयंकर अपराध भी कर बैठते हैं ,और कभी मानसिक अवताड़ना से अपने आप को मुक्त भी कर लेते हैं । जहां कोई जघन्य अपराध नहीं होता वहाँ लोग बच निकलते हैं । अब इनको अपनी दुनिया अलग बसाने का अधिकार या किसी प्रकार का कोई आर्थिक सहायता मांगने के लिए कोर्ट या जज की क्या आवश्यकता होती । काफी दिन इसी उधेड़ बुन में खो गए  थे ।

   वह तीन महीने की गर्भवती थी । इससे पहले एक गर्भपात हो गया था जिसके वजह से काफी कमजोर हो गई है । आंटी ,मम्मी को भी होने वाला है ,लेकिन उसका पहले हो जाएगा। अब मेरा मन जरा भी विचलित नहीं था । मैं इस मत्स्य न्याय को समझ चुकी थी । आधुनिक कन्या अपने अधिकार के लिए लड़ना सीख गई थी । परंतु दक़ियानूसी माँ परम्पराओं में बंधकर महज एक विकृत मानवी बन कर रह गई थी । पति से नफरत करने के वावजूद वह उसके ज़्यादतियों का विरोध नहीं कर पा रही थी ।

   आज वह बहुत खुश थी । आंटी ,किशोर आने वाला है ,मै  आपसे मिलवाऊंगी  अरे तुम्हारे लिए मैंने मैट्रेस खरीद के रखा था और तुम्हारे लिए  दहेज का कुछ  समान तो तुम्हारी मम्मी  ले गई थी पहले ही ,ये भी ले  जाना अच्छा ,आज ही ले जाऊँगी किशोर को बुला लूँगी

   शाम को दौड़ती हुई ,शर्म से दोहरी होती आई आंटी वो बाहर खड़ा है बुला लूँ । बुला ले , पहले गद्दे निकाल लूँ । डबल बेड के भारी गद्दे उसने पलंग के किनारे से खींच कर धीरे धीरे बाहर के दरवाजे तक लाया  ,इतने में शगुन के कुछ रुपए लेकर मैं भी उसके पीछे निकली । उसने मुझे नमस्ते किया ,” ये पैसे रख लो ,सविता  को ठीक से रखना ,मैंने भी सविता  पर अपना प्यारपूर्ण अधिकार का एहसास  जताते हुए कहा था ।

  सुबह सवेरे सविता  हाजिर आंटी मैं अब काम नहीं करूंगी ,मैं जा रही हूँ कहाँ ?,क्यों ?” मैं बहुत क्रोधित और चकित भी हुई जा रही थी। ये लोग पता नहीं क्या हैं ।

  वह सिर झुकाए हुए खामोश थी । चेहरे पर बनावटी हंसी के निशान । फिर सिर उठा कर इधर उधर देखा ,घर में ,मुझे अकेला देख कर ,वह वहीं फर्श पर दीवार के सहारे लेकर बैठ गई ,एक म गुम्म । मैं वहीं खड़ी उस अनबूझ पहेली को आँखें फाड़ कर देखती रह गई । अचानक उसने अपना सिर उठा कर मेरी ओर देखा और मुझे यूं घूरते हुए से देख  कर वह ज़ोर से रो पड़ी थी । आंटी बहुत झगड़ा होता है ,इतनी गंदी गंदी गाली देती है,मेरा समान सब रख ली जो आप ने दिया था विसिआर ,कुकर ,कूलर ,बर्तन सब रख ली , कौन झगड़ा करता है ? किसने सामान रख लिया ?  मैं अकबकाई सी उसे देखते हुए बोल पड़ी थी अरे वही ,मेरी माँ ने । बताओ तुम्हीं, किसोर क्या सोचेगा ,उसको मारने दौड़ी,उसको भद्दी भद्दी गालियां दी । उसकी माँ को गाली दी आखिर क्यों तुम्हारी माँ इतने गुस्से में है। वह तो इतनी अच्छी है मैंने उसके प्रज्ज्वलित क्रोध पर प्यार की बूंदें छिड़कनी चाही। मगर आज वह समझौते या करुणा जैसे बातों को समझने के मूड ,में नहीं थी । वह आहत चोट खाए नागिन की भांति फुफकार रही थी । आंटी तुम मेरी माँ को नहीं जानती हो ,एक नंबर की ,,है । वह किसोर से पैसे मांगती थी शादी के लिए । कितना देगा ? वह शादी में खर्च किया ही था। उसको गले में सोने का हार चाहिए ,फलांग चाहिए ,चिलंग चाहिए ।  और क्या उसके बच्चे पालने के लिए वह पैसा देगा ? मैंने तो बचपन से कमा कमा कर सब उसी को दिए ,सोने के अंगूठी बनवा कर दिया कान का झूमक बनवा कर दिया ,दो कमरे का घर बनवा कर दिया । अब मैं इस चुड़ैल के पास नहीं रहूँगी ,मैं किसोर के साथ रानीखेत  जा रही हूँ ,उसने कहा है कि अब मुझसे काम नहीं करवाएगा ,आराम से घर देखना है,” । मुझे उसकी वो बातें याद आ रही थी आंटी अब हम दिल्ली में ही रहेंगे ,किसोर के लिए भी यहीं कोई नौकरी देखेंगे ,वहाँ वह जिस फैक्ट्री में काम करता है ,बहुत खतरनाक काम है। बड़े बड़े मशीन पर चढ़ने और उरने से कई लोग ऊंचाई से गिर कर खतम भी हो गए । ऐसे वह कई बार पहले भी अपनी माँ से नाराज हुई थी ,मेरे मनाने पर मान जाती  थी । माँ है तुम्हारी ,तुम नहीं देखोगी तो कौन देखेगा ,वैसे ही तुम्हारा पिता उसकी जान के पीछे पड़ा रहता है । और अब तो बच्चा भी होने वाला है ,कौन मदद करेगा अरे वह अपनी माँ को बुला ली है ,वही बुढिया सब फसाद की जड़ है । नानी को नाना मामा सब से पटती नहीं है तो माँ को फुसला कर मेरे पापा से भी लड़वाती रहती है । आंटी मेरे पापा इतने खराब नहीं है ,जितनी मेरी माँ है ,अपनी माँ ,भाई सब के बहकावे में आकर इसने सबका जीना हराम कर रखा है । अब और नहीं ।  किसोर तो मुझे रात में ही ले जाने वाला था ,मैंने आपसे मिलने के लिए सुबह जाने को कहा । वह बेचारा रात भर भूखा रहा । अभी दस बजे की बस से हम जा रहे हैं। कुछ देर तक उसका मुंह देखते रहने के पश्चात मेंने उसे कुछ रुपए ,एक नया शौल दिया । वह अपना आँसू पोंछ कर बड़ी गंभीरता से मेरे हाथ से पैसे लेकर घर से बाहर चली गई थी ।

  बालकनी में खड़ी होकर मै उसे देखने लगी ।  सुख की तलाश में जैसे कोई नविना  अपने पति के साथ , एक नए सपने की ,नए घर की,  एक छोटी  सी आशा लिए एक नई दुनिया बसाने के लिए जा रही थी ।हृदय की अव्यक्त भावनाओं को व्यक्त करने के लिए , मेरी आँखों से,उसके हिस्से के कुछ अनमोल , आँसू छलक पड़े थे । ईश्वर ! इसे अब  भरपूर सुख देना ।

 0000      0000  @ ( C ) डा० कामिनी कामायनी ॥ ( अप्रकाशित संग्रह ,कतरा- कतरा सुख) । 


  

टिप्पणियाँ